BA Semester-5 Paper-2B History - Socio and Economic History of Medieval India (1200 A.D-1700 A.D) - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.)

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2788
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 7

मुगलकाल में बैंकिंग प्रणाली का विकास

(Development of Banking
System in Mughal Period)

प्रश्न- मुगलकालीन भारत की मुद्रा व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखिए।

उत्तर -

मध्यकाल में सिक्कों का चलन

सिक्कों के वास्तविक चलन का प्रमाण हमें ईसा पूर्व की दूसरी शताब्दी में मिलता है परन्तु यह सोचना कि उस समय सिक्के पूरी तरह वैज्ञानिक आधार पर ढाले जाते रहे होंगे सम्भव नहीं है। तुर्की राज्य की स्थापना के पहले दिल्ली और उसके आस-पास के प्रदेशों में 'दम्म' नामक सिक्का प्रचलित था। इसका निश्चित मूल्य आंकना सम्भव नहीं है। अनेक प्रकार के छोटे-छोटे सिक्के भी प्रचलित थे जो विविध मूल्य के थे और जिनके एक ओर शासक का नाम तथा दूसरी ओर लक्ष्मी का चित्र अंकित रहता था।

सल्तनत युग के सिक्कों की विशेषता थी कि इनका महत्व सांकेतिक न होकर केवल मौद्रिक था। इसी आधार पर दक्षिण के सुनारों को सही वजन तथा मूलभूत कीमत के सिक्कों को बनाने की आज्ञा दी गई थी। राज्य सदैव ही इस बात के लिए प्रयत्नशील रहता था कि सिक्कों की शुद्धता तथा वजन को बनाये रखें। इस युग में हिन्दुओं के समय में प्रचलित 'देहलीवाल्स' की तरह का जीतल का सिक्का मिलता है। जो बहलोल लोदी द्वारा चलाये गये बहलोली सिक्के के समय तक प्रचलित रहा। तांबे के सिक्के को जीतल और सोने तथा चांदी के सिक्के को टंक कहा जाता था। समस्त सल्तनतकाल में सोने और चांदी के सिक्कों का तांबे के सिक्कों के रूप में मूल्य निर्धारित करने की पद्धति बनी रही। सल्तनतकाल के जो सिक्के प्राप्त हुए हैं उन पर यद्यपि सुल्तान का नाम अवश्य अंकित है परन्तु टकसाल का नाम नहीं मिल पाया है। इल्तुतमिश के समय का चांदी का टंक और तांबे का जीतल मिलता है। उसके 'टंक' पर टकसाल का नाम भी मिलता है। वह पहला शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाये जिन पर खलीफा का नाम और उसकी उपाधियाँ अंकित रहती थीं, इसका तौल 175 ग्रेन था।

मुगलों की मुद्रा व्यवस्था पहले शासकों की अपेक्षा अधिक ठोस थी। मुगलकाल में तीन प्रकार की धातुओं (सोने की मुहर, चांदी का रुपया एवं तांबे का दाम) के सिक्के चलन में थे जिनकी एकरूपता तथा शुद्धता सराहनीय है। चांदी का सिक्का रुपया इस व्यवस्था का आधार था। बाबर के शाहरुख व दिरहम नामक सिक्के जो मोटे रूप से मध्य एशिया में प्रचलित सिक्कों के नमूनों पर थे अधिकतर आगरा, लाहौर, दिल्ली, जोनपुर टकसाल में गढ़े गये थे। कंधार से उसने बाबरी नाम का सिक्का भी चलाया था। बाबर के सोने और चांदी के सिक्कों पर एक ओर कलमा तथा खलीफाओं के नाम तथा दूसरी ओर बादशाह की उपाधि अंकित थी। हुमायूँ के सिक्के बाबर जैसे ही थे केवल उसमें 'बाबर बादशाह गाजी' के स्थान पर 'मुहम्मद हुमायू बादशाह' गाजी अंकित था। सन 1540 में जब शेरशाह सूरी ने हुमायूं को पराजित कर स्वयं गद्दी पर अधिकार कर लिया तो उसने मुद्रा के क्षेत्र में परिवर्तन किया उसने 178 ग्रेन के चांदी तथा 330 ग्रेन तांबे के सिक्के प्रचलित किए। उसने रुपये के आधे, चौथाई, आठवें और सोलहवें भाग के भी सिक्के चलाये। तांबे के सिक्के के छोटे भाग को पैसा कहा जाता था। उसने सोने के सिक्के भी चलाये परन्तु उनकी संख्या बहुत ही कम है।

अकबर के समय में मुद्रा - सन् 1577 में अकबर ने मुद्रा में सुधार किया और शीराज के ख्वाजा अबुलसमंद को दिल्ली की शाही टकसाल का अधिकारी बनाया। उसने सोने, चांदी और तांबे के अनेक प्रकार के और अनेक तोलों के भिन्न-भिन्न सिक्के चलवाये केवल सोने के सिक्कों के ही 26 भेद थे। चांदी का मुख्य सिक्का रुपया था जो तौल में 72 ग्रेन था। रुपया गोल और चौकोर दोनों प्रकार का था। तांबे की प्रधान मुद्रा दाम थी जिसे पैसा या फूलूस भी कहा जाता था। इसका तौल 323.5 ग्रेन (1 तोला 8 मासा 7 सुर्ख) होता था 40 दाम का 1 रुपया - होता था। अकबर ने अपने सिक्कों पर अपनी मूर्ति नहीं खुदवायी थी। किन्तु वस्तुतः अकबर के काल में ही एक सुविकसित मुद्रा प्रणाली की स्थापना हुई। इस प्रणाली का मुख्य आधार रुपया था जिसका वजन 1/8 भरी (डेढ़ रत्ती का एक वजन, grain) एक ठोस मुद्रा नीति किसी भी राज्य में व्यापार व उद्योग के विकास के लिए आवश्यक है। इस आवश्यकता को अति प्राचीन काल से ही अनुभव किया जाता रहा है।

जहांगीर और उत्तरवर्ती भासकों के सिक्के - जहांगीर पहला बादशाह था जिसने सिक्कों पर अपनी मूर्ति खुदवायी और उसके एक सिक्के पर तो सीधे हाथ में शराब का प्याला लिए हुए उसकी मूर्ति अंकित है। जहाँगीर के एक चांदी के सिक्के पर राशिचक्र भी है। जहाँगीर और शाहजहाँ दोनों ने ही अकबर की मुद्रा प्रणाली को जारी रखा किन्तु उन्होंने सिक्कों पर अपना नाम अवश्य खुदवा दिया। औरंगजेब ने सिक्कों को और अधिक आकर्षित बनाया और शाहजहाँ की तुलना में उनका भार 5/8 अधिक बढ़ा दिया, परन्तु उसके राज्यारोहण के पश्चात् उसने सिक्कों पर कलमा अंकित करना बंद कर दिया।

इतिहाकार ब्राउन ने लिखा है कि औरंगजेब के समय के सिक्कों में दारा, शाहशुजा, बीदारबख्त तथा अली-मुश-शान के द्वारा चलाये गये रुपये के सिक्के अधिक रुचिकर है। औरंगजेब के उत्तरकालीन समय में बीजापुर और गोलकुण्डा के सिक्के काफी मात्रा में प्रचलित थे। सम्पूर्ण मुगलकाल के चांदी के सिक्कों के बारे में थेवेनी ने लिखा है कि 'महान मुगलों की चांदी की मुद्रा किसी दूसरी प्रचलित चांदी की मुद्रा से कहीं अधिक अच्छी थी और इसलिए जब कभी कोई विदेशी मुगल राज्य में प्रवेश करता था तो वो समस्त चांदी के सिक्कों को यहाँ की मुद्रा में परिवर्तित करवा लेता था जो पुनः गलाकर नये और सुन्दर सिक्कों में ढाल दी जाती थी।

सिक्कों का वजन - क्योंकि मुगल काल में सोने तथा चांदी के सिक्के की मान्य मुद्रा थी. इसलिए इनका मूल्य समय-समय पर घटता-बढ़ता रहता था। आइन-ए-अकबरी की रचना के समय सोने तथा चांदी के सिक्कों के मूल्यों में 1: 9.4 का अनुपात था, जहाँगीर के समय यह घटकर 1 : 12, शाहजहाँ के समय 11 / 3 : 14 व औरंगजेब के समय में इसमें सबसे अधिक घटोतरी हुई जबकि इसका अनुपात 1: 16 का हो गया। सोने की मोहर इस समय सबसे अधिक प्रचलित थी और आइन-ए-अकबरी के अनुसार नौ रुपये एक मोहर के बराबर थे।

हॉकिन्स लिखता है कि 1608-12 के बीच एक अशर्फी दस रुपयों के बराबर थी जिसका मूल्य 1614 में बढ़कर 10.7 रुपये हो गया था। जहाँगीर के शासन के अन्तिम वर्षों में एक मोहर 14 रुपये के बराबर थी जो 1658 में 162/5 रुपये के बराबर मानी जाने लगी थी। 1695 में एक मोहर 13 रुपये के बराबर मानी जाती थी। चांदी के मूल्य में घटत - बढ़त के साथ ही तांबे के मूल्य में भी घटत- बढ़त आ जाती थी और उसी अनुरुप तांबे के सिक्कों के मूल्य में भी फेरबदल होती रहती थी। अकबर के समय के दाम का वजन 320 ग्रेन था जो औरंगजेब के समय में आकर 109 से 215 ग्रेन के बीच रह गया। अहमदाबाद के व्यापारियों के पास काले तांबे के सिक्के थे। प्रान्तीय सूबेदारों ने हल्के तांबे के सिक्के गढ़वाये थे जिनको बाद में शासक की मान्यता प्राप्त हो गई थी। अकबर के 207/8 माशे की अपेक्षा दाम का वजन 14 माशे निश्चित किया गया। औरंगजेब ने आदेश निकाला कि रुपया जिसका उस समय वास्तविक मूल्य केवल आंधा ही रह गया था। पूरे मूल्य के समरूप ही माना जाये, इसी प्रकार दाम को रुपये की तुलना में मूल्य घटता-बढ़ता रहता था। अकबर के राज्यकाल के आरम्भ में एक रुपये में 35 और फिर 38 दाम होते थे।

आइन-ए-अकबरी की रचना के समय 40 दाम एक रुपये के बराबर माना जाता था।

आइन-ए-अकबरी के अनुसार यद्यपि एक रुपये में 40 दाम का बाजार भाव घटता-बढ़ता रहता था परन्तु राज्य वेतन का भुगतान करते समय इसे ही आधार माना जाता था। जहाँगीर के राज्यकाल में भी दाम और रुपये का अनुपात यही बना रहा परन्तु शाहजहाँ के शासनकाल के नवें वर्ष में एक रुपये में केवल 26 या 27 दाम माने जाने लगे। बंगाल में 1640 ई० में एक रुपया 28 दाम के बराबर माना जाता था। औरंगजेब के आरम्भिक वर्षों में एक रुपया केवल 15 दाम का माना जाता था। इस तरह दाम का मूल्य बदलता रहता था।

सोने का सबसे प्रचलित सिक्का मोहर था। आइन-ए-अकबरी के अनुसार एक मोहर नौ रुपये के बराबर थी। हॉकिन्स (1608-12) लिखता है कि एक अशर्फी दस रुपये के बसबर थी। यह बात ध्यान देने योग्य है कि भारतवर्ष में चाँदी बाह्य देशों से आयात की जाती थी। अमरीका खोज के बाद स्पेन व अन्य यूरोपीय देशों के पास चाँदी का भंडार जमा हो गया था जो धीरे-धीरे अन्य एशियाई देशों के साथ भारत में भी पर्याप्त मात्रा में पहुँची। परिणामस्वरूप चाँदी के सिक्कों की संख्या में वृद्धि हुई और सिक्कों के मूल्यों में कमी आ गई।

उत्पादनकर्त्ताओं द्वारा कर का नगद भुगतान करने के कारण और सिक्कों की क्रय शक्ति कम हो जाने के कारण अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा। आगे चलकर ई० सन् 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद चांदी के अभाव में व्यापार पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। इसके अतिरिक्त 18वीं शताब्दी में स्वतन्त्र राज्यों की उत्पत्ति एवं उनके शासकों द्वारा अपनी-अपनी मुद्रा का प्रचलन भी व्यापारिक गतिविधियों के लिए बाधक सिद्ध हुआ, कारण सभी सिक्कों का मूल्य अपेक्षाकृत एक जैसा न था।

टकसाल - मुगलकाल में सिक्के ढालने का काम अनेक टकसालों में होता था जो साम्राज्य में फैली हुई थीं। अबुल फजल द्वारा दिए गए हवाले के अनुसार 1575 ई० में तांबे के सिक्कों के लिए 42 चांदी के सिक्कों के लिए 14 एवं सोने की मुहरों के लिए 4 टकसालें थी। चांदी के रुपयों का प्रचलन अधिक होने के कारण एवं साम्राज्य विस्तार के कारण इनकी संख्या 1700 ई० में 40 हो गई थी। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि अलग-अलग स्थानों पर ढालने के बावजूद भी सिक्कों के मूल्य में एकरूपता थी।

टकसालों में धातु देकर कोई भी व्यक्ति सिक्के ढलवा सकता था, ढलवाने की दर सिक्के के मूल्य का 5.6 प्रतिशत थी। सिक्के पर टकसाल का नाम व ढलने का अंकित रहता था। सोने की मुहरों व अशर्फियों का उद्देश्य मुख्य रूप से धन संग्रह करने के लिए ही होता था जिसका वजन 169 ग्रेन था। छोटी-छोटी आवश्यकताओं एवं दैनिक भुगतान के लिए तांबे का सिक्का प्रचलित था जो दाम कहलाता था।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सल्तनतकालीन सामाजिक-आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- सल्तनतकालीन केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में प्रांतीय शासन प्रणाली का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- सल्तनत के सैन्य-संगठन पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत काल में उलेमा वर्ग की समीक्षा कीजिए।
  7. प्रश्न- सल्तनतकाल में सुल्तान व खलीफा वर्ग के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
  8. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- मुस्लिम राजवंशों के द्रुतगति से परिवर्तन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजतंत्र की विचारधारा स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के स्वरूप की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- सल्तनत काल में 'दीवाने विजारत' की स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- सल्तनत कालीन राजदरबार एवं महल के प्रबन्ध पर एक लघु लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- 'अमीरे हाजिब' कौन था? इसकी पदस्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  15. प्रश्न- जजिया और जकात नामक कर क्या थे?
  16. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में राज्य की आय के प्रमुख स्रोत क्या थे?
  17. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन भू-राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में सुल्तान की पदस्थिति स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन न्याय-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- 'उलेमा वर्ग' पर एक टिपणी लिखिए।
  21. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों में सल्तनत का विशाल साम्राज्य तथा मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक की दुर्बल नीतियाँ प्रमुख थीं। स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- विदेशी आक्रमण और केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बनी। व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- अलाउद्दीन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थीं? अलाउद्दीन के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि उसने इन कठिनाइयों से किस प्रकार निजात पाई?
  24. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार व बाजार नियंत्रण नीति का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का विवरण दीजिए। उसकी दक्षिणी विजय की सफलता के क्या कारण थे?
  26. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  27. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- 'खिलजी क्रांति' से क्या समझते हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  30. प्रश्न- खिलजी शासकों के काल में स्थापन्न कला के विकास पर टिपणी लिखिए।
  31. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का एक वीर सैनिक व कुशल सेनानायक के रूप में मूल्याँकन कीजिए।
  32. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  33. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजनीति क्या थी?
  34. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  35. प्रश्न- अलाउद्दीन की हिन्दुओं के प्रति नीति स्पष्ट करते हुए तत्कालीन हिन्दू समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व सुधार नीति के विषय में बताइए।
  37. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का प्रारम्भिक विजय का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की महत्त्वाकांक्षाओं को बताइये।
  39. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का लाभ-हानि के आधार पर विवेचन कीजिये।
  40. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की हिन्दुओं के प्रति नीति का वर्णन कीजिये।
  41. प्रश्न- सूफी विचारधारा क्या है? इसकी प्रमुख शाखाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके भारत में विकास का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों, विशेषताओं और मध्यकालीन भारतीय समाज पर प्रभाव का मूल्याँकन कीजिए।
  43. प्रश्न- मध्यकालीन भारत के सन्दर्भ में भक्ति आन्दोलन को बतलाइये।
  44. प्रश्न- समाज की प्रत्येक बुराई का जीवन्त विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है। विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  46. प्रश्न- “मध्यकालीन युग में जन्मी, मीरा ने काव्य और भक्ति दोनों को नये आयाम दिये" कथन की समीक्षा कीजिये।
  47. प्रश्न- सूफी धर्म का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।
  48. प्रश्न- राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफी संतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है? विश्लेषण कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी मत की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के प्रभाव व परिणामों की विवेचना कीजिए।
  51. प्रश्न- भक्ति साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भक्ति एवं सूफी सन्तों ने किस प्रकार सामाजिक एकता में योगदान दिया?
  54. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के कारण बताइए
  55. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की क्या दशा थी? इस काल की एकमात्र शासिका रजिया सुल्ताना के विषय में बताइये।
  56. प्रश्न- "डोमिगो पेस" द्वारा चित्रित मध्यकाल भारत के विषय में बताइये।
  57. प्रश्न- "मध्ययुग एक तरफ महिलाओं के अधिकारों का पूर्णतया हनन का युग था, वहीं दूसरी ओर कई महिलाओं ने इसी युग में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करायी" कथन की विवेचना कीजिये।
  58. प्रश्न- मुस्लिम काल की शिक्षा व्यवस्था का अवलोकन कीजिये।
  59. प्रश्न- नूरजहाँ के जीवन चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसकी जहाँगीर की गृह व विदेशी नीति के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
  61. प्रश्न- 1200-1750 के मध्य महिलाओं की स्थिति को बताइये।
  62. प्रश्न- "देवदासी प्रथा" क्या है? व इसका स्वरूप क्या था?
  63. प्रश्न- रजिया के उत्थान और पतन पर एक टिपणी लिखिए।
  64. प्रश्न- मीराबाई पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- रजिया सुल्तान की कठिनाइयों को बताइये?
  66. प्रश्न- रजिया सुल्तान का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  67. प्रश्न- अक्का महादेवी का वस्त्रों को त्याग देने से क्या आशय था?
  68. प्रश्न- रजिया सुल्तान की प्रशासनिक नीतियों का वर्णन कीजिये?
  69. प्रश्न- मुगलकालीन आइन-ए-दहशाला प्रणाली को विस्तार से समझाइए।
  70. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व का निर्धारण किस प्रकार किया जाता था? विस्तार से समीक्षा कीजिए।
  71. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व वसूली की दर का किस अनुपात में वसूली जाती थी? ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर क्षेत्रवार मूल्यांकन कीजिए।
  72. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व प्रशासन का कालक्रम विस्तार से समझाइए।
  73. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व के अतिरिक्त लागू अन्य करों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान मराठा शासन में राजस्व व्यवस्था की समीक्षा कीजिए।
  75. प्रश्न- शेरशाह की भू-राजस्व प्रणाली का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  76. प्रश्न- मुगल शासन में कृषि संसाधन का वर्णन करते हुए करारोपण के तरीके को समझाइए।
  77. प्रश्न- मुगल शासन के दौरान खुदकाश्त और पाहीकाश्त किसानों के बीच भेद कीजिए।
  78. प्रश्न- मुगलकाल में भूमि अनुदान प्रणाली को समझाइए।
  79. प्रश्न- मुगलकाल में जमींदार के अधिकार और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मुगलकाल में फसलों के प्रकार और आयात-निर्यात पर एक टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- अकबर के भूमि सुधार के क्या प्रभाव हुए? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व में राहत और रियायतें विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- मुगलों के अधीन हुए भारत में विदेशी व्यापार के विस्तार पर एक निबंध लिखिए।
  84. प्रश्न- मुग़ल काल में आंतरिक व्यापार की स्थिति का विस्तृत विश्लेषण कीजिए।
  85. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापारिक मार्गों और यातायात के लिए अपनाए जाने वाले साधनों का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- मुगलकाल में व्यापारी और महाजन की स्थितियों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- 18वीं शताब्दी में मुगल शासकों का यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  88. प्रश्न- मुगलकालीन तटवर्ती और विदेशी व्यापार का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  89. प्रश्न- मुगलकाल में मध्य वर्ग की स्थिति का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  90. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार के प्रति प्रशासन के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  91. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार में दलालों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  92. प्रश्न- मुगलकालीन भारत की मुद्रा व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  93. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली के विकास और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली हुण्डी व्यवस्था को समझाइए।
  95. प्रश्न- मुगलकालीन मुद्रा प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  96. प्रश्न- मुगलकाल में बैंकिंग और बीमा पर प्रकाश डालिये।
  97. प्रश्न- मुगलकाल में सूदखोरी और ब्याज की दर का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  98. प्रश्न- मुगलकालीन औद्योगिक विकास में कारखानों की भूमिका का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- औरंगजेब के समय में उद्योगों के विकास की रूपरेखा का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- मुगलकाल में उद्योगों के विकास के लिए नियुक्त किए गए अधिकारियों के पद और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान कारीगरों की आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- 18वीं सदी के पूर्वार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति की व्याख्या कीजिए।
  103. प्रश्न- मुगलकालीन कारखानों का जनसामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
  104. प्रश्न- यूरोपियन इतिहासकारों के नजरिए से मुगलकालीन कारीगरों की स्थिति प

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